नाम
सोसायटी का नाम "उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान" होगा।
मुख्यालय
संस्थान का मुख्यालय एवं कार्यालय लखनऊ, उत्तर प्रदेश में होगा।
उद्देश्य
संस्थान के उद्देश्य निम्नलिखित होंगे :-
- संस्कृत भाषा तथा उसके साहित्य का संरक्षण करना, उसे प्रोत्साहित करना तथा उसका विकास करना।
- संस्कृत, पालि और प्राकृत के हस्तलिखित, दुर्लभ और महत्वपूर्ण ग्रन्थों का तथा संस्कृत शिक्षण से सम्बन्धित आवश्यक पुस्तकों का प्रकाशन करना।
- संस्कृत की वैज्ञानिक तथा अन्य महत्वपूर्ण कृतियों के हिन्दी और अन्य दूसरी भाषाओं में अनुवाद और उनके प्रकाशन की व्यवस्था करना।
- संस्कृत लेखकों की महत्वपूर्ण कृतियों के प्रकाशन में सहायता देना।
- संस्कृत लेखकों की प्रकाशित उत्कृष्ट कृतियों पर पुरस्कार देना।
- संस्कृत भाषा एवं साहित्य के वृद्ध तथा विपन्न विद्वानों को आर्थिक सहायता देना।
- संस्कृत भाषा के उच्च अध्ययन के निमित्त निर्दिष्ट अवधि के लिए सुविधायें एवं आर्थिक सहायता प्रदान करना।
- संस्कृत वाड्मय के विभिन्न पक्षों पर अधिकारी विद्वानों के भाषण आयोजित करना।
- विशिष्ट कोटि के संस्कृत के विद्वानों और साहित्यकारों को पुरस्कृत एवं सम्मानित करना।
- संस्कृत भाषा और साहित्य के विभिन्न पक्षों से सम्बन्धित गोष्ठियाँ, कवि-सम्मेलन तथा सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि आयोजित करना।
- संस्कृत पत्रिकाओं का प्रकाशन करना।
- आकाशवाणी, दूरदर्शन तथा अन्य प्रसार-माध्यमों द्वारा संस्कृत भाषा और साहित्य के प्रचार एवं प्रसार का प्रयास करना।
- संस्कृत भाषा और साहित्य के विकास से सम्बन्धित संस्थाओं, अनुसंधानशालाओं, पुस्तकालयों आदि को सहायता देना।
- संस्कृत की प्रख्यात संस्थाओं से आदान-प्रदान करना तथा सम्पर्क करना।
- संस्कृत के विकास के लिए केन्द्रीय सरकार से, राज्य सरकारों से अथवा अन्य संस्थाओं और व्यक्तियों आदि से सहायता प्राप्त करना।
- संस्कृत, पालि और प्राकृत की हस्तलिखित कृतियों (पाण्डुलिपियों) का क्रय एवं संग्रह और पुस्तकालय आदि की स्थापना की व्यवस्था करना।
- ऐसे सभी प्रासंगिक कार्य करना जो ऊपर निर्दिष्ट उद्देश्यों को आगे बढ़ाने में सहायक हों।
कार्यकारिणी समिति के सदस्यों के नाम, पते तथा व्यवसाय जिनकों संस्था के नियमों के अनुसार कार्यभार सौंपा गया है।
कार्यकरिणी समिति के सदस्यों की सूची
क्र0 सं0 |
नाम |
पता |
टेलीफोन नंबर |
विशेष विवरण |
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उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान की नियमावली
नाम
इस संस्था का नाम उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान होगा।
सामान्य परिषद का गठन
संस्थान अर्थात् उसके सामान्य परिषद् के निम्नलिखित सदस्य होंगें :-
- अध्यक्ष |
- एक उपाध्यक्ष।
- प्रमुख सचिव/सचिव/ भाषा विभाग उ0प्र0 शासन या उनके प्रतिनिधि |
- सचिव, सांस्कृतिक कार्य विभाग, उत्तर प्रदेश शासन या उनके प्रतिनिधि।
- सचिव, वित्त विभाग, उत्तर प्रदेश शासन अथवा उनके प्रतिनिधि।
- कुलपति, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी |
- उपनिदेशक, संस्कृत शिक्षा, इलाहाबाद |
- से (15) आठ व्यक्ति, जिनमें से कम से कम तीन व्यक्ति अनिवार्यत: उत्तर प्रदेश विश्वविद्यालय में संस्कृत विभागों के शिक्षकों में से होगें तथा दो आचार्य स्तर तक की मान्यता प्राप्त प्रथम श्रेणी की परम्परागत संस्कृत पाठशालाओं के प्रचार्यो में से होगें, उत्तर प्रदेश शासन द्वारा मनोनीत किये जायेगे। (16) से (18) तीन प्रतिनिधि प्रदेश की ऐसी विभिन्न संस्थाओं के होगें, जो संस्कृत प्रचार-प्रसार में रत हो और जिन्हें सामान्य परिषद द्वारा चुना जायेगा। (19) से (23) संस्कृत के पांच विद्वान जो अपनी व्यक्तिगत हैसियत से सामान्य परिषद द्वारा चुने जायेगे। (24) कोषाध्यक्ष और
- निदेशक, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान।
सदस्यता, सदस्यों का कार्यकाल, रिक्त आदि
- प्रतिबन्ध यह है कि इस संस्थान के गठन की तिथि से एक वर्ष के लिए इस संस्थान के सामान्य परिषद के समस्त गैर सरकारी सदस्यों का मनोनयन उत्तर प्रदेश शासन द्वारा किया जायेगा।
- संस्थान की सामान्य परिषद अथवा उसकी कार्यकारिणी समिति अथवा उसकी किसी अन्य समिति के जो पदेन सदस्य होेंगे उनकी सदस्यता उस पद की समापित पर स्वत: समाप्त हो जायेगी तथा उस पद के उत्तराधिकारी ऐसे सदस्य हो जायेेेंगे।
- संस्थान की सामान्य परिषद, कार्यकारिणी समिति अथवा उसकी किसी अन्य समिति के किसी पदेन अथवा सरकारी सदस्य के स्थान पर उत्तर प्रदेश शासन किसी भी समय प्रतिस्थानी नियुक्त कर सकता है तथा ऐसी नियुकित पर अवमुक्त सदस्य के स्थान पर प्रतिस्थानी सदस्य स्थान ग्रहण करेगा।
- गैर - सरकारी सदस्यों की दशा में उनकी सदस्यता का कार्यकाल नामित किये जाने की तिथि से एक वर्ष का होगा।
- कोर्इ भी सदस्य संस्थान की सामान्य परिषद का सदस्य नहीं रह जायेगा यदि उसकी मृत्यु हो जाय, वह त्याग पत्र दे दे, विकृत मस्तिष्क का हो जाये, दिवालिया निर्णीत कर दिया जाय अथवा नैतिक पतन सम्बन्धी दण्डापराध के लिए सिद्धदोष हुआ हो।
- यदि कोर्इ सदस्य संस्थान की सामान्य परिषद की सदस्यता से त्यागपत्र देना चाहे तो वह संस्थान की सामान्य परिषद के अध्यक्ष को सम्बोधित करके त्यागपत्र भेजेगा और त्यागपत्र स्वीकृत की तिथि से प्रभावशील हो जायेगा, किन्तु प्रतिबन्ध यह है कि अध्यक्ष उत्तर प्रदेश शासन के शिक्षा विभाग के सचिव के पास त्यागपत्र भेजकर पद त्याग सकता है जो स्वीकृति की तिथि से प्रभावशील हो जायेगा।
- किसी रिक्त में मनोनीत अथवा निर्वाचित व्यकित, जैसी भी स्थिति हो, सदस्यता के कार्यकाल की असमाप्त अवधि के लिए पद धारण करेगा।
- संस्थान की सामान्य परिषद तथा उसकी कार्यकारिणी समिति अपना कार्य करती रहेगी भले ही उसके किसी सदस्य की नियुक्ति अथवा नाम के मनोनित करने में कोर्इ चूक या विलम्ब हुआ। संस्थान की सामान्य परिषद तथा उसकी कार्यकारिणी समिति का कोर्इ भी कार्य केवल इस कारण अवैध न होगा कि उसमें कोर्इ रिक्ति विधमान थी अथवा उसके किसी सदस्य का नाम मनोनीत करने में अथवा नियुक्ति मेें कोर्इ चूक थी।
- इस नियम में पूर्ववत उपबंध में किसी बातों के रहते हुए भी उत्तर प्रदेश शासन अपने विवेक पर इस संस्थान के गठन (रजिस्ट्रेशन) होने की तिथि से 9 वर्षों की अवधि के अन्दर संस्थान के सामान्य परिषद एवं कार्यकारिणी का समय-समय पर पुनर्गठन कर सकता है और ऐसा पुनर्गठन किये जाने पर उपबंध (1) के अधीन पहले से मनोनीत सदस्यों का कार्यकाल समाप्त हो जायेगा।
टिप्पणी
शासनादेश सं0 119515-(17)90-62(12)87 शिक्षा-17 दिनांक 8 मर्इ 1990 के अनुसार-नियम 3 का उपबंध 9 में आये शब्द 12 वर्षों की अवधि के स्थान पर 25 वर्ष की अवधि कर दी गर्इ है।
सामान्य परिषद के कर्तव्य व उत्तरदायित्व
संस्थान की सामान्य परिषद के निम्नलिखित कर्तव्य व उत्तरदायित्व होंगे:-
- संस्थान की सामान्य परिषद् के नियम-2 के मध्य (16) से (18) तथा (19) से (23) में उल्लिखित गैर सरकारी सदस्यों का चुनाव करना।
- संस्थान की कार्यकारिणी समिति के दो सदस्यों का चुनाव करना।
- कार्यकारिणी समिति द्वारा तैयार किये गये वार्षिक आय-व्यय का अनुमोदन करना।
- संस्थान के कार्य तथा प्रशासन के संचालन के लिए नियमों को बनाना, उन्हें अंगीकृत करना एवं उनमें परिवर्तन करना।
- संस्थान के लेखाओं की जांच करने के लिए उत्तर प्रदेश शासन द्वारा निर्धारित सम्परीक्षकों द्वारा जांच कराने की व्यवस्था करना।
- कार्यकारिणी समिति द्वारा प्रस्तावित कार्यक्रमों एवम योजनाओं पर विचार करना तथा अनुमादित करना।
- संस्थान के उद्देश्यों की पूर्ति एवं कार्यवाहियों में अभिवृद्धि हेतु यदि कोर्इ अन्य विषय प्रस्तुत हो, तो उस पर विचार करना एवम् अनुमोदन प्रदान करना।
- अन्य किसी कार्य पर विचार करना जिससे संस्थान के कर्तव्यों एवम उद्देश्यों की पूर्ति हो।
सामान्य परिषद की बैठकें
सामान्य परिषद् की बैठकें वर्ष में कम से कम एक बार अध्यक्ष की सहमति से हुआ करेंगी। विशेष बैठक भी अध्यक्ष द्वारा कार्यकारिणी समिति या सामान्य परिषद् के कुल सदस्यों की संख्या के दो-तिहार्इ द्वारा प्रार्थना करने पर बुलार्इ जा सकती है।
कार्यकारिणी समिति का गठन
कार्यकारिणी समिति में निम्नलिखित सदस्य होंगे-
- अध्यक्ष- सामान्य परिषद् के अध्यक्ष
- उपाध्यक्ष (3) से (6) चार सदस्य सामान्य परिषद में उत्तर प्रदेश शासन द्वारा मनोनीत आठ सदस्यों में से तथा नियम-2 के मद (3) से (7) तक उल्लिखित सदस्यों में से उत्तर प्रदेश शासन द्वारा मनोनीत किये जायेगें। (7) से (8) दो सदस्य सामान्य परिषद द्वारा नियम-2 में मद (16) से (18) तथा (19) से (23) में उल्लिखित सदस्यों में से क्रमश: एक-एक चुने जायेगें। (9) कोषाध्यक्ष और
- निदेशक, उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थान।
- कार्यकारिणी समिति की सदस्यता, सदस्यों का कार्यकाल, रिक्त आदि के सम्बन्ध में वही प्रतिबन्ध लागू होंगे जो कि सामान्य परिषद के संबंध में नियम-3 में उलिलखित किये जा चुके है। कार्यकारिणी समिति के कर्तव्य व उत्तरदायित्व
कार्यकारिणी समिति के कर्तव्य व उत्तरदायित्व
कार्यकारिणी समिति के कर्तव्य व उत्तरदायित्व निम्नलिखित होगे :-
- सामान्य परिषद के नियंत्रणाधीन अकादमी के सम्पूर्ण कार्यों के कार्यान्वयन का प्राधिकार।
- संस्थान एवं उसके कार्यालय के कार्य के पर्यवेक्षक एवं नियंत्रण के लिए उत्तरदायी होना।
- सामान्य परिषद के विचारार्थ एवं अनुमोदनार्थ संस्थान के कार्यक्रम तैयार करना।
- सामान्य परिषद के विचारार्थ एवं अनुमोदनार्थ संस्थान की वार्षिक रिपोर्ट एवं लेखाओं का तैयार करना।
- संस्थान के कार्यसंचालन हेतु उत्तर प्रदेश शासन के अनुमोदन से ऐसे पदों का सर्जन करना जिनकी आवश्यकता हो एवं उन पर नियुकित आदि की शर्तें निर्धारित करना तथा संस्थान के समस्त कर्मचारियों की सेवा-शर्तों का निर्धारण करना। इन पर सामान्य परिषद का अनुमोदन भी अपेक्षित होगा।
- संस्थान के कर्मचारी वर्ग की नियुकितया करना
- अन्य समस्त ऐसे कार्य करना जो अकादमी के उद्देश्यों एवं कर्तव्यों की पूर्ति में सहायक हों या उनका सुचारू रूप से सम्पादन करना।
- कार्यकारिणी समिति, प्रस्ताव पारित करके संस्थान के पदों पर नियुक्ति सम्बन्धी अपना कोर्इ अधिकार या अपना कोर्इ अन्य अधिकार जिससे संस्थान के कार्यों के सम्पादन मेें सुविधा हो, समुचित प्रतिबन्धों एवं निर्देशों के साथ किसी उप-समिति, अध्यक्ष अथवा निदेशक को प्रतिनिहित कर सकेगी।
पदाधिकारी
संस्थान के निम्नलिखित पदाधिकारी होंगे :-
- अध्यक्ष
- उपाध्यक्ष
- कोषाध्यक्ष और
- निदेशक
अध्यक्ष की नियुक्ति, कार्यकाल तथा कर्तव्य
अध्यक्ष, जो कि संस्कृत भाषा एवं साहित्य का विद्वान कोई गैर-सरकारी व्यक्ति होगा, उसे राज्य सरकार द्वारा नामित किया जायेगा। कार्यभार ग्रहण करने की तिथि से यदि वह त्यागपत्र न दे अथवा राज्य सरकार द्वारा न हटाया जाये तो उनका कार्यकाल एक वर्ष का होगा।
अध्यक्ष के निम्नलिखित कार्य होगें :-
- सामान्य परिषद एवं कार्यकारिणी समिति की बैठकों की अध्यक्षता करना।
- संस्थान की सामान्य परिषद या कार्यकारिणी समिति द्वारा सौंपे गये कार्यों का निष्पादन करना तथा संस्थान के कार्यों एवं मामलों का निर्देशन एवं समन्वय करना।
- आपातकालीन स्थिति में कार्यकारिणी समिति के कर्तव्यों एवं उत्तरदायित्वों का निर्वहन करना, किन्तु प्रतिबन्ध यह होगा कि इस प्रकार निर्वाहित किये गये कार्यों से कार्यकारिणी समिति को आगामी बैठकों में अवगत कराया जाय।
- संस्थान के पूर्णकालिक कर्मचारियों पर नियंत्रण रखना एवं उनका मार्ग-दर्शन करना।
- अपने विवेकानुसार कोषाध्यक्ष एवं निदेशक से संस्थान के कार्यों की रिपोर्ट प्राप्त करना, तथा
- अन्य ऐसे समस्त कार्य जिससे संस्थान के उददश्यों एवं कृत्यों की पूर्ति हो सके।
उपाध्यक्ष की नियुक्ति, कार्यकाल तथा कर्तव्य
संस्थान में दो उपाध्यक्षों के स्थान पर अब केवल एक पूर्ण कालिक उपाध्यक्ष होगा, जो कि संस्कृत भाषा एवं साहित्य का विद्वान कोई गैर-सरकारी व्यक्ति होगा, उसे राज्य सरकार द्वारा नामित किया जायेगा। कार्यभार ग्रहण करने की तिथि से यदि वह त्याग पत्र न दे अथवा राज्य सरकार द्वारा न हटाया जाये तो उनका कार्यकाल एक वर्ष का होगा।
उपाध्यक्ष के निम्नलिखित कर्तव्य होगें :-
- अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उनके समस्त कर्तव्यों का निर्वहन करना।
- अन्य कार्यों को जो अध्यक्ष, सामान्य परिषद या कार्यकारिणी समिति द्वारा सौपें जायें, सम्पादित करना। उक्त दोनों प्रयोजनों के निष्पादनार्थ अध्यक्ष एक उपाध्यक्ष को अपने सामान्य अथवा विशिष्ट निर्देशों द्वारा नामित करेंगें।
कोषाध्यक्ष की नियुक्ति, कार्यकाल तथा कर्तव्य
कोषाध्यक्ष की नियुक्ति सदैव उत्तर प्रदेश शासन द्वारा उस अवधि के लिए तथा उन शर्तों पर की जायेगी जिसे शासन उपयुक्त समझे।
कोषाध्यक्ष के निम्नलिखित कर्तव्य होगें :-
- सभी वित्तीय मामलों में संस्थान को अपने विवेक पर अन्यथा अध्यक्ष एवं संस्थान के अधिकारियों द्वारा सलाह मांगने पर परामर्श देना।
- कार्यकारिणी समिति के कर्तव्यों एवं उत्तरदायित्वों के अधीन संस्थान को स्वीकृत अनुदान या अन्य धनराशियों के उचित उपयोग के लिए उत्तरदायी होना, और
- कार्यकारिणी समिति या सामान्य परिषद द्वारा सौंपे गये समस्त कार्यो का सम्पादन करना।
निदेशक की नियुक्ति तथा कर्तव्य
संस्थान का निदेशक सदैव उत्तर प्रदेश शासन द्वारा ऐसी अवधि के लिए तथा ऐसी शर्तों पर नियुक्त किया जायेगा जैसा उत्तर प्रदेश शासन उचित समझे तथा उसे ऐसा वेतन दिया जायेेगा जिसे उत्तर प्रदेश शासन निशिचत करें।
निदेशक के कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व निम्नलिखित होंगे :-
- निदेशक संस्थान का मुख्य कार्यकारी अधिकारी होगा जो अध्यक्ष के निर्देशन एवं पथप्रदर्शन के अधीन अकादमी के समुचित प्रशासन के लिए उत्तरदायी होगा।
- निदेशक संस्थान की वार्षिक आख्या, लेखा तथा बजट ऐसे आकार में, जो उत्तर प्रदेश शासन द्वारा विहित किया जाय, तैयार करने के लिए उत्तरदायी होगा।
- निदेशक संस्थान के कर्मचारी वर्ग के सदस्यों के कर्तव्यों को विहित करेगा और उन पर आवश्यक पर्यवेक्षण तथा प्रशासनिक नियंत्रण रखेगा।
- संस्थान के विभिन्न प्राधिकारियों की ओर से पत्र-व्यवहार करेगा।
- निदेशक संस्थान के सभी अंगो जैसे सामान्य परिषद, कार्यकारिणी समिति या उसकी किसी समिति का सचिव भी होगा।
- संस्थान की समस्त चल एवं अचल सम्पतित एवं अभिलेखों का अभिरक्षक होगा।
- संस्थान के सभी अंगों की बैठकें बुलाने के लिये सूचना जारी करेगा।
- संस्थान के सभी अंगों की बैठकों की कार्यसूची तथा कार्यवृत्त तैयार करेगा तथा उन पर समुचित कार्यवाही करेगा।
- संस्थान के समस्त लेखाओं का कोषाध्यक्ष के परामर्शनुसार अपने उचित निर्देशन एवं नियंत्रण में विधिवत् रख-रखाव करेगा।
- संस्थान से सम्बनिधत सभी संविदायें तथा संलेख निदेशक द्वारा निष्पादित तथा हस्ताक्षरित किये जायेंगे किन्तु प्रतिबन्ध यह है कि चेक आदि संक्राम्यकरण पत्रों पर निदेशक के अतिरिक्त कोषाध्यक्ष भी हस्ताक्षर करेंगें।
सदस्यता की समाप्ति
उत्तर प्रदेश शासन संस्थान की सामान्य परिषद, कार्यकारिणी समिति या किसी समिति उपसमिति के अध्यक्ष या सदस्य को हटा सकता है यदि अध्यक्ष या सदस्य सामान्य परिषद या संबंधित समिति की लगातार तीन से अधिक बैठकों में अनुपस्थित रहता है।
बैठकें
- संस्थान के किसी भी अंग की बैठक के लिये कम से कम 7 दिन की सूचना आवश्यक होगी किन्तु कोर्इ आपात बैठक इससे कम सूचना पर भी बुलार्इ जा सकती है। आपात बैठक से तात्पर्य उस बैठक से है जा किसी विशेष कारणवश सामान्य परिषद के दो-तिहार्इ सदस्यों की प्रार्थना पर अथवा स्वयं अपनी ओर जारी किये गये अध्यक्ष के आदेशानुसार किसी विशिष्ट विषय पर विचार करने के लिये बुलार्इ जाये।
- निदेशक अध्यक्ष के परामर्श करने के पश्चात संबंधित अंग की बैठक बुलायेगा।
- प्रत्येक ऐसी बैठक की कार्यवाहियों का अभिलेख रखा जायेगा।
- किसी अंग की बैठक में उपसिथत सदस्यों के बहुमत द्वारा लिया गया निर्णय संबंधित अंग का निर्णय समझा जायेगा।
- संस्थान की सामान्य परिषद व कार्यकारिणी समिति की किसी बैठक के लिए गणमूर्ति व्यक्तिश: उपस्थित क्रमश: सात व पाच सदस्यों में होगी किन्तु प्रतिबन्ध यह है कि ऐसी बैठक, जो गणपूर्ति के अभाव में स्थगित कर दी गयी हो, के अधिसूचित कार्य-सम्पादन की निमित्त होने वाली बैठक के लिये किसी गणपूर्ति की आवश्यकता न होगी।
आय व संपत्ति
संस्थान की सम्पत्तियों से होने वाली आय को संस्थान के उद्देश्यों की पूर्ति एवं कार्यवाहियों के विकास के लिये लगाया जायेगा। संस्थान की आय या सम्मपति का कोर्इ भाग सदस्य या कर्मचारियों को लाभांश, बोनस व अन्य प्रकार से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से न तो दिया जायेगा और न हस्तान्तरित किया जायेगा।
यात्रा भत्ता
संस्थान अथवा उसकी ओर से नियुक्त किसी समिति के ऐसे सदस्य जो राज्य सरकार या केंद्र सरकार के कर्मचारी हों, अपनी सरकार के नियमों के अनुसार अपने विभाग से यात्रा तथा दैनिक भत्ता प्राप्त करेंगे। संस्थान के अन्य सदस्यों को दैनिक तथा यात्रा भत्ता उसी रूप में मिलेगा जो राज्य सरकार के प्रथम श्रेणी के अधिकारियों के लिये अनुमन्य हों।
विघटन
संस्थान का विघटन किये जाने पर ऋण तथा दायित्वों की भरपार्इ किये जाने के पश्चात यदि कोर्इ संपत्ती बच रहेगी तो उसका निस्तारण उत्तर प्रदेश शासन द्वारा निर्देशित रीति से किया जायेगा।
नियमावली में संशोधन
इस नियमावली में संशोधन, परिवर्तन या परिवर्धन उत्तर प्रदेश शासन द्वारा अपने विवेक पर अथवा उत्तर प्रदेश शासन के अनुमोदन के अधीन रहते हुये यथोचित सूचना देने के उपरान्त उक्त प्रयोजन के लिये विशेष रूप से बुलार्इ गयी संस्थान की सामान्य परिषद की बैठक में किया जा सकता है।
सामान्य
- उत्तर प्रदेश शासन समय-समय पर, संस्थान को ऐसे मामलों में जिनमें राज्य की सुरक्षा निहित हो अथवा जो पर्याप्त सार्वजनिक हित के हों, उसके कृत्यों के प्रयोग और सम्पादन के सम्बन्ध में निर्देश दे सकता है तथा ऐसे अन्य निर्देश भी दे सकता है जिन्हें संस्थान के कार्य-संचालन और वित्तीय मामलों तथा अन्य मामलों के संबंध में आवश्यक समझे और इसी प्रकार किसी ऐसे निदर्ेेशनिर्देशों को परिवर्तित तथा विखंडित कर सकता है। संस्थान इस प्रकार जारी किये गये निर्देशनिदर्र्ेेशों को तात्कालिक प्रभाव से कार्यानिवत करेगा।
- उत्तर प्रदेश शासन संस्थान की सम्पत्ति और उसके कार्य-कलापों के संबंध में ऐसे विवरणियों, लेखों तथा अन्य सूचना की मांग कर सकता है जिसकी उसे समय-समय पर आवश्यकता हो।
- संस्थान द्वारा पारित बजट की एक प्रति वित्तीय वर्ष के प्रारम्भ में उत्तर प्रदेश शासन को प्रस्तुत की जायेगी।